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महान योद्धा को अखण्ड भारत ही नहीं पूरी दुनियां के भारतीय नमन करते हैं

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रामनरेश शर्मा
नमस्ते पीलीभीत। छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के एक महान राजा थे, उनका राजनैतिक कौशल अभेद्य मना जाता हैं। शिवाजी महाराज ने 1674 ई. में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी औरे कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। सन् 1674 में रायगढ़ में राज्यभिषेक के बाद “छत्रपति“ की उपाधि दी गई। छत्रपती शिवाजी महाराज ने अनुशासित सेना व प्रशासनिक इकाइयों कि सहायता से एक योग्य और प्रगतिशील सुशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किये व छापामार युद्ध में नवीनतम शैली (शिवसूत्र) विकसित की। प्राचीन सनातन राजनीतिक संस्कृतियों व दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी-संस्कृत भाषा को राजकाज की भाषा बनाया। आज युवाओं के लिए शिवाजी महाराज के जीवन चरित्र से काफी कुछ सीखने को मिल सकता हैं।

जीवन परिचय-
जन्म की तारीख और समयः 19 फ़रवरी 1630, शिवनेरी दुर्ग
मृत्यु स्थान व तारीखः 3 अप्रैल 1680, रायगड फोर्ट
राज्याभिषेकः 0६ जून १६७४
समाधिः रायगढ़
पत्नीः सकवरबाई (विवा. 1656दृ1680), पुतलाबाई (विवा. 1653दृ1680), ज़्यादा
बच्चेः सम्भाजी, राजाराम, अम्बिकाबाई महादिक, ज़्यादा
घराना, भोंसले

छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी, 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। शाहजी भोंसले कुनबी मराठा की पत्नी जीजाबाई (राजमाता जिजाऊ) की कोख से शिवाजी महाराज का जन्म हुआ था। शिवनेरी का दुर्ग पूना (पुणे) से उत्तर की तरफ़ जुन्नर नगर के पास था। उनका बचपन उनकी माता जिजाऊ माँ साहेब के मार्गदर्शन में बीता। वह सभी कलाओं में माहिर थे, उन्होंने बचपन में राजनीति एवं युद्ध की शिक्षा ली थी। शिवाजी के बड़े भाई का नाम सम्भाजी था जो अधिकतर समय अपने पिता शाहजी भोसलें के साथ ही रहते थे। शाहजी राजे कि दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते थीं। उनसे एक पुत्र हुआ जिसका नाम एकोजी राजे था। उनकी माता जी जीजाबाई जाधव कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली महिला थी और उनके पिता एक शक्तिशाली सामंत थे। शिवाजी महाराज के चरित्र पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। बचपन से ही वे उस युग के वातावरण और घटनाओं को भली प्रकार समझने लगे थे। शासक वर्ग की करतूतों पर वे झल्लाते थे और बेचैन हो जाते थे। उनके बाल-हृदय में स्वाधीनता की लौ प्रज्ज्वलित हो गयी थी। उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों का संगठन किया। अवस्था बढ़ने के साथ विदेशी शासन की बेड़ियां तोड़ फेंकने का उनका संकल्प प्रबलतर होता गया। छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन् 14 मई 1640 में सइबाई निंबाळकर के साथ लाल महल, पुणे में हुआ था।

छत्रपति की उपाधि और 8 पत्नियां
छत्रपति को लेकर कई तरह चर्चाएं हैं, इनमें से आठ पत्नियों को लेकर और छत्रपति की उपाधि का जिक्र हैं। हालांकि छत्रपति की उपाधि महान राजा शिवाजी महाराज को राजभिषेक के बाद मिली थी, नाकि आठ विवाह करने पर। इतिहास बताता हैं कि शिवाजी महाराज युद्ध कौशल में ही नहीं निपुण थे वह समय के अनुकुल विवेक को भी इस्तेमाल करना बखूबी जानते थे। उन्होंने सभी मराठा सरदारों को एक छत्र के नीचे लाने के लिए 8 विवाह किये थे। पत्नियों में सईबाई निम्बालकर – (बच्चेः संभाजी, सखुबाई, राणूबाई, अम्बिकाबाई); सोयराबाई मोहिते – (बच्चे- दीपबै, राजाराम); पुतळाबाई पालकर (1653-1680), गुणवन्ताबाई इंगले; सगुणाबाई शिर्के, काशीबाई जाधव, लक्ष्मीबाई विचारे, सकवारबाई गायकवाड़ – (कमलाबाई) (1656-1680) हैं।

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